आज एक जुलाई से भारत में तीन नए कानून लागू हो गए हैं। आज तक भारत में ब्रिटिश काल में बनाए गए कानूनों की तहत पुलिस और कोर्ट में कार्रवाई होती है। लेकिन अब आईपीसी और सीआरपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता ( BNS ) , भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता ( BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम ( BSA) लागू हो गए हैं। देश की राजधानी दिल्ली के कमला मार्केट थाने में नए कानून के हिसाब से पहला केस दर्ज किया गया। देर रात पेट्रोलिंग कर रही पुलिस की टीम ने देखा कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास एक शख्स ने बीच सड़क पर रेहड़ी लगाई हुई है। वह उस पर पानी और गुटखा बेच रहा है। इस वजह से लोगों को आने-जाने में दिक्कत हो रही है। इसके बाद पुलिस ने इस शख्स के खिलाफ बीएनएस के तहत एफआईआर दर्ज की।
पुलिस ने कई बार रेहड़ी लगाकर बिक्री करने वाले शख्स से वहां से हटने को कहा, ताकि रास्ता साफ हो जाए और लोगों को किसी तरह की परेशानी नहीं हो। हालांकि, वह पुलिसकर्मियों की बात को नजरअंदाज करता रहा और उसे मानने से इनकार कर दिया। उसने अपनी मजबूरी बताई और वहां से चला गया। इसके बाद पुलिस ने उसका नाम-पता पूछकर नए कानून बीएनएस की धारा 285 के तहत एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। यह इस कानून के तहत दर्ज की गई पहली एफआईआर है।
भारतीय न्याय संहिता यानी बीएनएस में 358 सेक्शन हैं, जबकि आईपीसी में 511 सेक्शन हुआ करते थे। इसमें 21 नए तरह के अपराधों को शामिल किया गया है। 41 अपराधों के लिए कारावास की सजा की अवधि को बढ़ाया गया है। 82 अपराधों में जुर्माने की राशि को भी बढ़ाया गया है। बीएनएस में 25 ऐसे अपराध हैं, जिसमें कम से कम सजा का प्रावधान किया गया है। नए कानून में 6 ऐसे अपराध हैं, जिनके लिए सामाजिक सेवा का दंड दिया जाएगा। साथ ही अपराध के 19 सेक्शंस को हटा दिया गया है।
हालांकि, यहां गौर करने वाली बात ये है कि जिन अपराधों में मुकदमों को 1 जुलाई से पहले दर्ज किया गया है, उनमें कार्रवाई आईपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत ही होगी। केंद्र सरकार ने फरवरी में ही गजट नोटिफिकेशन जारी कर तीनों नए आपराधिक कानूनों को 1 जुलाई से लागू करने का ऐलान किया था।
नए कानूनों में नाबालिग के साथ दुष्कर्म करने वाले दोषियों को फांसी की सजा दी जा सकेगी। नाबालिग के साथ गैंगरेप को नए अपराध की श्रेणी में रखा गया है। राजद्रोह अब अपराध नहीं माना जाएगा। नए कानून में मॉब लिंचिंग के दोषियों को भी सजा दिलाने का प्रावधान किया गया है। इसमें कहा गया है कि जब 5 या उससे ज्यादा लोग जाति या समुदाय के आधार पर किसी की हत्या करते हैं तो उन्हें आजीवन कारावास की सजा मिलेगी। गिरफ्तारी की वीडियो रिकॉर्डिंग करनी होगी। इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को मान्यता दी गई है।
नए बदलाव से लोगों को क्या-क्या फायदा होगा?
- अब पीड़ित को एफआईआर की कॉपी मिलेगी।
- लोगों को 90 दिनों में पता चलेगा कि जांच कहां तक पहुंची।
- पीड़ितों के मामलों की अब जल्द सुनवाई होगी।
- जांच में तेजी आएगी, 45 दिनों के अंदर जांच करनी पड़ेगी।
- ट्रायल में लोगों को परेशानी कम होगी, 2 से अधिक स्थगन नहीं मिलेगी।
ऑनलाइन एफआईआर के क्या फायदे होंगे?
सिद्धार्थ लूथरा ने बताया कि पहले ऐसा होता था कि क्राइम जिस जगह पर हुआ है हमें वहीं केस दर्ज करवाना पड़ता था. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. अब आप किसी दूसरे जगह भी एफआईआर दर्ज करवा सकते हैं और वो फिर उस क्षेत्र में ट्रांसफर हो जाएगा.
नए कानूनों को लेकर वरिष्ठ वकील सुदेश कुमार ने बताया कि इस बदलाव के माध्यम से कई अच्छी बातें की गयी है। निर्भया कांड के बाद भी कानून में सख्ती की गयी थी। सुदेश कुमार ने बताया कि लड़के और लड़कियों के उम्र को बराबर 18 साल कर दिया गया है। दूसरी बात महिलाओं से जुड़े मामलों के लिए महिला जज और महिला पुलिस की भूमिका को सुनिश्चित कर दिया गया है। मेडिकल रिपोर्ट का समय भी तय कर दिया गया है। क्लोजर रिपोर्ट में भी बदलाव किया गया है। उन्होंने कहा कि यह महिला फ्रेंडली कानून है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में हुए अहम बदलाव
- भारतीय दंड संहिता (CrPC) में 484 धाराएं थीं, जबकि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में 531 धाराएं हैं। इसमें इलेक्ट्रॉनिक तरीके से ऑडियो-वीडियो के जरिए साक्ष्य जुटाने को अहमियत दी गई है।
- नए कानून में किसी भी अपराध के लिए अधिकतम सजा काट चुके कैदियों को प्राइवेट बॉन्ड पर रिहा करने की व्यवस्था है।
- कोई भी नागरिक अपराध होने पर किसी भी थाने में जीरो एफआईआर दर्ज करा सकेगा। इसे 15 दिन के अंदर मूल जूरिडिक्शन, यानी जहां अपराध हुआ है, वाले क्षेत्र में भेजना होगा।
- सरकारी अधिकारी या पुलिस अधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए संबंधित अथॉरिटी 120 दिनों के अंदर अनुमति देगी। यदि इजाजत नहीं दी गई तो उसे भी सेक्शन माना जाएगा।
- एफआईआर दर्ज होने के 90 दिनों के अंदर आरोप पत्र दायर करना जरूरी होगा। चार्जशीट दाखिल होने के बाद 60 दिन के अंदर अदालत को आरोप तय करने होंगे।
- हिरासत में लिए गए व्यक्ति के बारे में पुलिस को उसके परिवार को ऑनलाइन, ऑफलाइन सूचना देने के साथ-साथ लिखित जानकारी भी देनी होगी।
- केस की सुनवाई पूरी होने के 30 दिन के अंदर अदालत को फैसला देना होगा। इसके बाद सात दिनों में फैसले की कॉपी उपलब्ध करानी होगी।
- महिलाओं के मामलों में पुलिस को थाने में यदि कोई महिला सिपाही है तो उसकी मौजूदगी में पीड़ित महिला का बयान दर्ज करना होगा।